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Wednesday, September 18, 2024

Russia Ukraine Veto संयुक्‍त राष्‍ट्र में रूस ने छोड़ा ‘ब्रह्मास्त्र’, NATO की बोलती बंद

यूक्रेन में तबाही मचा रहे रूस ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद (Russia Veto Power UNSC) में आए प्रस्‍ताव को रोकने के लिए वीटो पावर का इस्‍तेमाल किया है। हालत यह रही कि सुरक्षा परिषद के 15 सदस्‍यों में 11 ने रूस के खिलाफ मतदान किया। वहीं, भारत, यूएई और चीन ने रूस के खिलाफ आए प्रस्‍ताव पर मतदान में हिस्‍सा नहीं लिया। रूस संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद का स्‍थायी सदस्‍य है और उसने इस प्रस्‍ताव को गिराने के लिए अपने ‘वीटो’ पावर का इस्‍तेमाल किया। रूस के वीटो करते ही यह प्रस्‍ताव पारित नहीं हो सका। आइए जानते हैं क्‍या है रूस का ब्रह्मास्‍त्र ‘वीटो’ और उसका यूक्रेन कनेक्‍शन जिसके आगे फेल हो गए नाटो देश….

अमेरिका और अन्‍य सुरक्षा परिषद के सदस्‍य जानते थे कि रूस प्रस्‍ताव के खिलाफ वीटो पावर का इस्‍तेमाल करेगा लेकिन इसके बाद भी उन्‍होंने प्रस्‍ताव को पेश किया। अमेरिका और नाटो देशों ने दलील दी कि इसस रूस अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अलग थलग पड़ेगा। सुरक्षा परिषद ने रूस से मांग की थी कि वह यूक्रेन पर हमले रोक दे और अपने सभी सैनिकों को वापस बुला ले। सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव के विफल होने से अमेरिका और नाटो के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐसे ही प्रस्ताव पर शीघ्र मतदान कराने की मांग का मार्ग प्रशस्त हो गया है। संयुक्‍त राष्‍ट्र की 193 सदस्यीय महासभा में वीटो का प्रावधान नहीं है।

जानें क्‍या सुरक्षा परिषद का वीटो पावर ?


Veto लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूं’। प्राचीन काल में रोम में कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती थी। वे इन शक्तियों का इस्तेमाल करके रोम सरकार की किसी कार्रवाई को रोक सकते थे। तब से यह शब्द किसी चीज को करने से रोकने की शक्ति के लिए इस्तेमाल होने लगा। वर्तमान समय में सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस,रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। यही यूक्रेन के मामले में हुआ। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने यूक्रेन के पक्ष में मतदान किया, वहीं रूस ने वीटो शक्ति का इस्‍तेमाल करके इस पूरे प्रस्‍ताव को रोक दिया।

यूक्रेन से जुड़ा है वीटो का इतिहास


संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो का इतिहास भी यूक्रेन से जुड़ा हुआ है। फरवरी, 1945 में क्रीमिया, यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन को याल्टा सम्मेलन या क्रीमिया सम्मेलन के नाम से जाना जाता था। इसी सम्मेलन में सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा था। क्रीमिया सम्मेलन का आयोजन युद्ध बाद की योजना बनाने के लिए हुआ था। इसमें ब्रिटेन के पीएम विंसटन चर्चिल, सोवियत संघ के पीएम जोसफ स्टालिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डी.रूजवेल्ट ने हिस्सा लिया। वैसे वीटो का यह कॉन्सेप्ट साल 1945 में ही नहीं आया। 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो पावर अस्तित्‍व में आ गया था। उस समय लीग काउंसिल के स्थायी और अस्थायी सदस्यों, दोनों के पास वीटो की शक्ति थी।

पहली बार कब हुआ इस्तेमाल


सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) ने 16 फरवरी, 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। लेबनान और सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव पर यूएसएसआर ने वीटो किया था। उस समय से अब तक वीटो का सैंकड़ों बार इस्तेमाल हो चुका है। हालांकि वर्ष 1991 में शीत युद्ध के समाप्त होने के बाद स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो के इस्तेमाल में नया रुझान देखने को मिला है। अब तक पहले की तुलना में कम बार वीटो पावर का इस्‍तेमाल किया गया है। हालांकि रूस और अमेरिका में फिर से कोल्‍ड वार जैसी स्थिति के बाद अब एक बार फिर से इसके ज्‍यादा इस्‍तेमाल होने का खतरा पैदा हो गया है।

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